संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की अमर प्रेम गाथा | जौहर का इतिहास

🌸 संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की अमर प्रेम और जौहर गाथा

संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी, जौहर और वीरांगनाओं का बलिदान | Rajput History Painting
संयोगिता 

क्या आप जानते हैं कि भारतीय इतिहास की सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक, संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की है?
यह सिर्फ प्रेम कहानी नहीं, बल्कि साहस, बलिदान और जौहर की ऐसी गाथा है जिसने आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित किया।


संयोगिता का प्रारंभिक जीवन

संयोगिता, कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थीं।
लोग कहते हैं कि वे अपने समय की सबसे रूपवती और गुणवान राजकुमारी थीं।
बचपन से ही वे संगीत, नृत्य और शास्त्रों में निपुण थीं।

सोचिए, उस दौर में जब शिक्षा और कला सिर्फ चुनिंदा लोगों तक सीमित थी, संयोगिता ने इतनी विद्या और कला अर्जित की। यही वजह थी कि उनका नाम पूरे आर्यावर्त में प्रसिद्ध था।


संयोगिता और पृथ्वीराज का प्रेम

दिल्ली के शूरवीर राजा पृथ्वीराज चौहान अपनी वीरता के लिए जाने जाते थे।
कहते हैं, दोनों का प्रेम पत्रों और संदेशवाहकों के जरिए पनपा।

लेकिन असली घटना तो तब हुई जब जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर रखा।
उन्होंने पृथ्वीराज को आमंत्रित ही नहीं किया और अपमान करने के लिए दरवाजे पर उनकी मिट्टी की मूर्ति रख दी।

अब ज़रा सोचिए, जब संयोगिता ने दरबार में प्रवेश किया तो सबकी नज़रें उन पर थीं।
उन्होंने बिना झिझक मूर्ति को अनदेखा किया और सीधे जाकर पृथ्वीराज के गले में वरमाला डाल दी।
यह दृश्य भारतीय इतिहास की सबसे यादगार प्रेम घटनाओं में से एक बन गया।

संयोगिता अपने स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान के गले में वरमाला डालती हुईं, राजदरबार के बीच साहस और प्रेम का प्रतीक
संयोगिता ने राजदरबार में सभी के सामने पृथ्वीराज को अपना वर चुना — यह भारतीय इतिहास का सबसे साहसी और यादगार क्षण था



जयचंद और पृथ्वीराज की दुश्मनी

संयोगिता के इस फैसले ने जयचंद को क्रोधित कर दिया।
यह अपमान दिल्ली और कन्नौज की दुश्मनी का कारण बन गया।

बाद में जब तराइन का युद्ध हुआ, तो जयचंद ने पृथ्वीराज का साथ देने की बजाय मोहम्मद गौरी का साथ दिया।
कहते हैं, यही विश्वासघात पृथ्वीराज की हार का सबसे बड़ा कारण बना।



तराइन का युद्ध और वीरता

1191 ई. में पहले तराइन युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को हराया और बंदी बनाया।
लेकिन उनकी उदारता देखिए — उन्होंने गौरी को छोड़ दिया।

अगले ही साल, 1192 ई. में फिर युद्ध हुआ।
इस बार धोखे से गौरी ने जीत हासिल की और राजपूत साम्राज्य को भारी क्षति पहुँची।


पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद संयोगिता का फैसला

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद हालात और बिगड़ गए।
मोहम्मद गौरी का सेनापति, कुतुबुद्दीन ऐबक, हजारों स्त्रियों को अपने हरम में डालना चाहता था।
संयोगिता भी उनमें शामिल थीं।

लेकिन राजपूत वीरांगनाओं ने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए जौहर का निर्णय लिया।
कहा जाता है, संयोगिता, रानी प्रथा और हजारों राजपूत स्त्रियों ने अग्निकुंड में प्रवेश कर जौहर किया।


जौहर की परंपरा

जौहर का अर्थ था — पराजय के बाद आत्मसम्मान की रक्षा हेतु स्त्रियों का अग्निकुंड में सामूहिक बलिदान।
यह राजस्थान और उत्तर भारत के इतिहास में कई बार हुआ।

  • चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का जौहर

  • रानी कर्णावती का जौहर

  • और संयोगिता का बलिदान

इन घटनाओं ने भारतीय इतिहास को सदियों तक अमर बना दिया।

राजपूत स्त्रियाँ किले में जौहर करते हुए, संयोगिता और अन्य रानियाँ अग्निकुंड में प्रवेश करतीं, आत्मसम्मान की रक्षा का प्रतीक
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद संयोगिता और हजारों राजपूत स्त्रियों ने अग्निकुंड में प्रवेश कर जौहर किया



संयोगिता के बलिदान का महत्व

संयोगिता का नाम आज भी एक वीरांगना के रूप में लिया जाता है।
उनका बलिदान सिर्फ पृथ्वीराज की पत्नी का कर्तव्य नहीं था, बल्कि यह पूरी भारतीय संस्कृति और आत्मसम्मान की रक्षा का प्रतीक था।

आज भी लोकगीतों, कविताओं और इतिहास ग्रंथों में उनकी और पृथ्वीराज की प्रेम गाथा गाई जाती है।


निष्कर्ष

संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी सिर्फ एक रोमांटिक कहानी नहीं है।
यह साहस, संघर्ष और बलिदान की ऐसी मिसाल है जो हमें यह सिखाती है कि प्रेम और आत्मसम्मान से बड़ा कोई धर्म नहीं।

आज के समय में हमें इन वीरांगनाओं से यही सीख लेनी चाहिए —
👉 सम्मान और आत्मसम्मान सबसे ऊपर है।
👉 सच्चा प्रेम कभी मृत्यु से भी हारता नहीं।


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