महाभारत युद्ध की पृष्ठभूमि
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धर्मयुद्ध का आधार: श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र को क्यों चुना? |
क्या आप जानते हैं कि पांडवों के वनवास के बाद भी कौरव उनके इन्द्रप्रस्थ लौटाने के लिए तैयार नहीं थे?
श्री कृष्ण, जो उस समय हस्तिनापुर के दूत बने थे, कई बार समझौते की कोशिश कर चुके थे।
लेकिन दुरीोधन की हठधर्मी और अन्यायपूर्ण नीति ने हर प्रयास को विफल कर दिया।
ऐसे में महाभारत का युद्ध अनिवार्य हो गया।
युद्ध का स्थल चुनने का महत्व
पितामह भीष्म ने कहा:
"श्री कृष्ण, ऐसा मैदान चुनें जो युद्ध के लिए उपयुक्त हो।"
श्री कृष्ण समझ गए कि यह केवल कौरव-पांडव संघर्ष नहीं था।
यह धर्म और मानवता के लिए आवश्यक युद्ध था।
इसलिए उन्होंने युद्ध का मैदान बहुत सोच-समझ कर चुना।
उनका डर था कि रिश्तेदार और परिवारजन आमने-सामने होंगे।
अगर कोई सुलह का विचार करे, तो यह महान युद्ध विफल हो सकता था।
इसलिए उन्होंने ऐसा मैदान खोजा जहाँ कठोरता और क्रूरता पहले से विद्यमान हो।
कुरुक्षेत्र का चयन: एक अद्भुत कहानी
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कठोर भूमि और निर्दयी इतिहास – धर्मयुद्ध के लिए कुरुक्षेत्र का चयन। |
श्री कृष्ण ने चारों दिशाओं में जासूस भेजे ताकि सबसे भयंकर और कठोर भूमि का पता चल सके।
उत्तर से आने वाले जासूस ने रिपोर्ट दी:
"मधव! मैंने ऐसा दृश्य देखा कि विश्वास करना कठिन है। इस संसार में और कोई भूमि इतनी क्रूर नहीं।"
श्री कृष्ण ने पूछा:
"क्या देखा तुमने?"
जासूस ने बताया:
कुरुक्षेत्र में दो भाई खेत में काम कर रहे थे।
बारिश होने लगी। बड़ा भाई छोटा भाई से कहता है:
"पानी रोकने के लिए बांध बनाओ।"
छोटा भाई जवाब देता है:
"मैं तुम्हारा दास नहीं हूँ, तुम खुद बनाओ।"
बड़ा भाई गुस्से में छोटा भाई मार देता है और उसका शव बांध पर रख देता है ताकि पानी रोका जा सके।
श्री कृष्ण ने यह सुनकर कहा:
"ऐसी भूमि जहाँ भाई ही भाई को मार देते हैं, युद्ध के लिए उपयुक्त होगी।"
पौराणिक पृष्ठभूमि
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कुरुक्षेत्र – जहाँ रक्तपात और धर्मयुद्ध की कथाएँ जन्मीं। |
कुरुक्षेत्र पर पहले भी भयंकर युद्ध और रक्तपात हुए थे।
भगवान परशुराम ने क्षत्रियों को 21 बार वध किया।
उनकी हत्या से 5 झीलें बनीं, जिनमें खून जमा हुआ।
इस वजह से यहाँ सुलह और मित्रता की भावना पनपना मुश्किल थी।
दिव्य वरदान और अंतिम योजना
देवराज इंद्र ने परशुराम को वरदान दिया था कि
"जो कोई कुरुक्षेत्र में मृत्यु को प्राप्त करेगा, वह सीधे स्वर्ग जाएगा।"
श्री कृष्ण ने इसे ध्यान में रखते हुए युद्ध का स्थान चुना, ताकि सभी वीर योद्धा जिन्हें युद्ध में मारा जाएगा, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो।
युद्ध से सीख और जीवन में महत्व
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उचित समय और स्थान का महत्व:
सफलता केवल सही योजना और सही स्थान से संभव है।
श्री कृष्ण ने युद्ध का मैदान इसलिए चुना कि लक्ष्य प्राप्ति में कोई बाधा न आए। -
कठिनाईयों का सामना:
कुरुक्षेत्र की भूमि कठोर और कठिन परिस्थितियों का प्रतीक थी।
जीवन में भी सफलता पाने के लिए कठिनाईयों का सामना करना जरूरी है। -
धर्म और न्याय का पालन:
युद्ध का उद्देश्य केवल कौरवों का वध नहीं था।
इसका उद्देश्य धर्म और न्याय की स्थापना भी था। -
योजना और रणनीति:
श्री कृष्ण की योजना ने युद्ध को सफल और परिणामकारी बनाया।
किसी भी कार्य में पूर्व योजना और तैयारी सफलता का आधार हैं।
निष्कर्ष
कुरुक्षेत्र का चयन केवल भौगोलिक दृष्टि से नहीं किया गया।
यह धार्मिक, नैतिक और रणनीतिक दृष्टि से चुना गया।
यह भूमि पहले से ही कठोरता और युद्ध का प्रतीक थी।
श्री कृष्ण की सूझबूझ ने सुनिश्चित किया कि महान युद्ध धर्म और न्याय की स्थापना के लिए हो।
जीवन में सीख:
सफलता और लक्ष्य प्राप्ति के लिए सही समय, सही स्थान और सही रणनीति अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
"जहाँ सही योजना, सही समय और सही दिशा होती है, वहाँ सफलता अपने आप आती है।"
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