क्या भगवान कृष्ण का पुत्र साम्ब दुष्ट था?
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भगवान कृष्ण और उनके पुत्र साम्ब का दृश्य, जो नियति और उद्देश्य को दर्शाता है |
महाभारत और पुराणों में भगवान कृष्ण के जीवन की कई रोचक कथाएँ मिलती हैं। इनमें सबसे चर्चा में रहता है उनका पुत्र साम्ब, जो कृष्ण और जांबवती के पुत्र थे।
बहुत से लोग मानते हैं कि साम्ब ने गलतियाँ कीं और वह दुष्ट था। लेकिन क्या सच में ऐसा था? दरअसल, साम्ब का जीवन इस बात का उदाहरण है कि कभी-कभी किसी व्यक्ति का कर्म उसकी मर्जी से नहीं, बल्कि भगवान की योजना और नियति के अनुसार होता है।
साम्ब का जन्म
भगवान कृष्ण की कई पत्नियाँ थीं। जांबवती, उनकी तीसरी पत्नी, वर्षों तक संतानहीन रही। वह कृष्ण के पास गईं और पुत्र की कामना की।
कृष्ण ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए ऋषि उपमन्यु के आश्रम में तपस्या शुरू की। छह महीने की कठिन तपस्या के बाद भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिए।
इसके बाद जांबवती को पुत्र हुआ और उसका नाम रखा गया साम्ब।
क्या आप जानते हैं? साम्ब का जन्म साधारण संतान के रूप में नहीं, बल्कि एक विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था – यादव वंश के नियत विनाश को पूरा करना।
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साम्ब का जन्म, जांबवती की इच्छा और ऋषि उपमन्यु के आश्रम में कठोर तपस्या के बाद |
पालन-पोषण और शिक्षा
साम्ब का पालन-पोषण द्वारका में हुआ। बचपन से ही उन्हें श्रेष्ठ शिक्षा और युद्ध-कौशल सिखाया गया।
वह शारीरिक रूप से ताकतवर और मानसिक रूप से बुद्धिमान बने। उनके गुण और व्यवहार में उनके पिता कृष्ण की झलक मिलती थी।
साम्ब को इस तरह तैयार किया गया कि जब समय आए, वह यादव वंश की नियत घटनाओं को पूरा कर सके।
लक्ष्मणा के साथ विवाह
जब साम्ब बड़े हुए, तब दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा का स्वयंबर आयोजित हुआ। साम्ब ने उस स्वयंबर में भाग लिया और लक्ष्मणा को अगवा कर लिया।
सोचिए, क्या साम्ब इस घटना के कारण दुष्ट कहलाए? उस समय के क्षत्रिय समाज में यह प्रथा सामान्य थी, बशर्ते सभी पक्षों की सहमति बनी रहे।
कौरवों ने साम्ब को पकड़ लिया और जेल में डाल दिया। कृष्ण ने बलराम की मदद से साम्ब को बचाया। इसके बाद साम्ब और लक्ष्मणा का विवाह संपन्न हुआ। यह विवाह साम्ब के जीवन में सामाजिक मान्यता और स्थायित्व लेकर आया।
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"साम्ब का लक्ष्मणा स्वयंबर में भाग लेना और उसे अगवा करना, उस समय की क्षत्रिय प्रथा के अनुसार।" |
साम्ब और ऋषियों का अभिशाप
साम्ब की किशोर अवस्था में एक मजाक ने उसे संकट में डाल दिया। उसने और उसके मित्रों ने ऋषियों के साथ मजाक किया।
ऋषियों ने क्रोधित होकर उसे अभिशाप दिया – साम्ब एक लोहे की गांठ को जन्म देगा, जो आगे चलकर यादव वंश के विनाश का कारण बनेगी।
साम्ब और मित्रों ने गांठ को पाउडर में पीसकर समुद्र में फेंक दिया। लेकिन लोहे का टुकड़ा समुद्र में गिरा और एक मछली ने उसे निगल लिया।
इससे स्पष्ट होता है कि साम्ब की नियति में पहले से ही यादव वंश के विनाश का तत्व था।
साम्ब का उद्देश्य
साम्ब ने कभी भी दुष्टता नहीं दिखाई। वह सिर्फ भगवान कृष्ण द्वारा निर्धारित नियत उद्देश्य को पूरा करने वाला साधन थे।
उनके कर्म और जीवन भगवान की योजना का हिस्सा थे।
यादव वंश का विनाश
साम्ब के जन्म और अभिशाप के कारण अंततः यादव वंश नष्ट हुआ।
यह घटना महाभारत के बाद की है।
साम्ब का जीवन हमें यह सिखाता है कि कभी-कभी किसी का कर्म व्यक्तिगत इच्छा से नहीं, बल्कि उच्च शक्ति और नियति के अनुसार होता है।
निष्कर्ष
साम्ब की कहानी हमें यह सिखाती है:
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कभी-कभी किसी व्यक्ति का कर्म सही या गलत नहीं, बल्कि नियति का हिस्सा होता है।
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साम्ब ने कभी भी दुष्टता नहीं दिखाई; वह केवल नियत उद्देश्य को पूरा करने वाला पुत्र था।
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भगवान कृष्ण की योजना और नियति हमेशा सही दिशा में काम करती है।
साम्ब का जीवन यह याद दिलाता है कि हर व्यक्ति का जन्म और कर्म किसी बड़ी योजना का हिस्सा हो सकता है।
कभी-कभी हमें सिर्फ समझना और स्वीकार करना ही चाहिए कि नियति के अनुसार चलना ही मानव जीवन की महान सीख है।
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