उद्धव–गोपी संवाद और भ्रमरगीत: कृष्ण-राधा प्रेम का अनुपम दर्शन
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"Uddhav–Gopi Samvad aur Brhamar Geet: Krishna aur Gopis ka prem aur bhakti ka anupam darshan." |
क्या आप जानते हैं कि उद्धव–गोपी संवाद को हिंदी भक्ति साहित्य में भ्रमरगीत शैली के माध्यम से सबसे खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है?
भ्रमरगीत में गोपियाँ अपने प्रेम और विरह की पीड़ा को काले भौंरे (भ्रमर) के माध्यम से व्यक्त करती हैं। यह शैली भावनाओं को इतनी प्राकृतिक तरीके से उजागर करती है कि पाठक तुरंत उनसे जुड़ जाता है।
उद्धव–गोपी संवाद की पृष्ठभूमि
भागवत महापुराण के अनुसार, जब श्रीकृष्ण गोकुल से मथुरा चले गए, तो उन्होंने गोपियों से वादा किया कि जल्दी लौट आएँगे।
लेकिन मथुरा में व्यस्तताओं के कारण यह संभव नहीं हुआ।
सोचिए, कृष्ण के जाने के बाद गोपियाँ कितनी व्याकुल हुई होंगी! उनके लिए कृष्ण सिर्फ प्रेम का विषय नहीं, बल्कि जीवन का आधार थे।
इसलिए श्रीकृष्ण ने अपने मित्र उद्धव को भेजा। उद्धव का काम था कि वे गोपियों को कृष्ण के वियोग का कारण समझाएँ और ज्ञान–योग के माध्यम से उन्हें सांत्वना दें।
गोपियों का विरह
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"Gopis Krishna ke virah mein vyakul, Brhamar Geet ke madhyam se apni bhavnaon ko vyakt kar rahi hain." |
गोपियाँ कृष्ण के बिना जीवन में अधूरी महसूस कर रही थीं। उनका हृदय निरंतर विरह की अग्नि में जल रहा था।
उनकी पीड़ा को सूरदास के पदों में देखिए:
“मधुबन तुम कत रहत हरे?
विरह वियोग स्यामसुंदर के, ठाढ़े क्यों न जरे।”
राधा का विरह तो और भी गहरा था। वे कृष्ण के वियोग में साधारण जीवन के काम भी भूल गई थीं।
“अति मलिन ब्रषभानु कुमारी।
हरि स्रमजलु अंतर तन भीजै, ता लालच न धुवावति सारी।। ”
इससे हम देख सकते हैं कि प्रेम की गहराई और भक्ति का स्तर कितना उच्च था।
उद्धव का उपदेश
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"Uddhav Gopis ko Nirgun Bhakti aur gyaan ke marg par chalne ki shiksha de rahe hain." |
उद्धव गोकुल पहुँचकर गोपियों से कहते हैं कि उन्हें निर्गुण ब्रह्म की उपासना करनी चाहिए।
उनके अनुसार, केवल ज्ञान और योग से ही मोक्ष संभव है। प्रेम और भक्ति पर्याप्त नहीं हैं।
लेकिन गोपियाँ उद्धव के तर्कों को समझदारी से सुनती हैं, पर उनका उत्तर अत्यंत मार्मिक और दर्शनपूर्ण होता है।
“निरगुन कौन देश कौ बासी?
मधुकर! हँसि समुझाइ, सौंह दै बूझतिं साँच न हाँसी।”
गोपियाँ उद्धव से पूछती हैं कि जिस निराकार ब्रह्म की वे उपासना करने को कह रहे हैं, पहले उसका स्वरूप बताइए। वह कहाँ रहता है? उसके माता-पिता कौन हैं? उसकी प्रिय वस्तुएँ क्या हैं?
उद्धव इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते।
गोपियों का उत्तर
फिर गोपियाँ कहती हैं:
“स्याम तन स्याम मन, स्याम है हमारौ धन।
आठौ जाम ऊधौ! हमैं स्याम ही सौं काम है।। ”
उनके अनुसार मन और हृदय पहले से ही कृष्ण के पास हैं, अब दूसरा मन कहाँ से लाएँ? यही कारण है कि वे कृष्ण को “मनचोर” कहती हैं।
वे उद्धव पर हल्का व्यंग्य भी करती हैं कि कृष्ण अब मथुरा जाकर राजनीति सीख आए हैं और योग-ज्ञान का संदेश भेज रहे हैं।
भ्रमरगीत शैली और सूरदास का योगदान
भ्रमरगीत में गोपियाँ अपने विरह और प्रेम को भौंरे के माध्यम से व्यक्त करती हैं।
सूरदास ने इस शैली को इतना भावपूर्ण और मार्मिक बना दिया कि गोपियों के हृदय की पीड़ा, प्रेम की गहराई और तर्कशक्ति अद्भुत रूप में सामने आई।
भले ही भागवत महापुराण में यह प्रसंग सरल है, सूरदास ने इसमें भाव-वक्रता और मौलिक प्रसंग जोड़कर इसे अविस्मरणीय बना दिया।
निष्कर्ष
अंत में उद्धव गोपियों की भक्ति और प्रेमपूर्ण वाणी के सामने निरुत्तर हो जाते हैं। वे मान लेते हैं कि सच्ची भक्ति और प्रेम सर्वोच्च मार्ग हैं।
“अब अति पंगु भयो मन मेरो।
गयो तहाँ निर्गुण कहिवे को, भयो सगुण को चेरो।। ”
इस प्रकार, उद्धव–गोपी संवाद केवल धार्मिक कथा नहीं, बल्कि दर्शन, प्रेम और भक्ति का अद्वितीय संगम है।
आज भी यह प्रसंग हिंदी साहित्य और भक्ति मार्ग में सर्वोच्च स्थान रखता है।
📌 FAQ – उद्धव गोपी संवाद और भ्रमरगीत
Q1. उद्धव–गोपी संवाद किस ग्रंथ में मिलता है?
A: यह संवाद भागवत महापुराण के दशम स्कंध (अध्याय 47) में वर्णित है।
Q2. गोपियों को उद्धव ने किस प्रकार की उपासना करने की सलाह दी?
A: उद्धव ने गोपियों से कहा कि वे निर्गुण ब्रह्म की उपासना करें और योग और ज्ञान के मार्ग पर चलें।
Q3. गोपियों ने उद्धव को क्या उत्तर दिया?
A: गोपियाँ कहती हैं कि उनका मन और जीवन पहले से ही श्रीकृष्ण में समर्पित है। वे सगुण भक्ति को सर्वोच्च मानती हैं और निराकार ब्रह्म की उपासना को अस्वीकार करती हैं।
Q4. भ्रमरगीत शैली क्या है?
A: भ्रमरगीत वह काव्य शैली है जिसमें गोपियाँ अपने विरह और प्रेम की पीड़ा व्यक्त करने के लिए काले भौंरे (भ्रमर) का प्रतीक प्रयोग करती हैं।
Q5. हिंदी साहित्य में भ्रमरगीत को सबसे लोकप्रिय किसने बनाया?
A: सूरदास ने इस शैली को सर्वाधिक मार्मिक और प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया। इसलिए उन्हें भ्रमरगीत का श्रेष्ठ रचनाकार माना जाता है।
Q6. उद्धव–गोपी संवाद का मुख्य संदेश क्या है?
A: इस संवाद का मुख्य संदेश यह है कि सच्ची भक्ति और प्रेम ज्ञान और तर्क से भी श्रेष्ठ हैं। गोपियों की निश्छल भक्ति ने उद्धव को भी सगुण भक्ति मार्ग की ओर मोड़ दिया।
Q7. गोपियाँ कृष्ण को क्यों “मनचोर” कहती हैं?
A: गोपियों का मानना था कि उनका मन और हृदय पहले ही कृष्ण के पास है। इसलिए वे कृष्ण के बिना और किसी में अपना मन नहीं लगा सकती थीं।
Q8. यह संवाद आज क्यों महत्वपूर्ण है?
A: उद्धव–गोपी संवाद केवल प्रेम और भक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि दर्शन, प्रेम और भक्ति का संगम है। यह आज भी साहित्य, अध्यात्म और भक्ति मार्ग में सर्वोच्च स्थान रखता है।
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