वीर सावरकर: साहस, देशभक्ति और अद्वितीय दृष्टि के प्रतीक
![]() |
Thumbnail showing Veer Savarkar’s face with saffron-white-green tricolor glow |
क्या आप जानते हैं कि वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगौर गांव में हुआ था?
वे एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए, जहां उनके भाई-बहन भी थे – गणेश, मैनाबाई और नारायण। बचपन से ही उनमें साहस और नेतृत्व की भावना प्रबल थी। यही कारण है कि लोग उन्हें ‘वीर’ कहते थे।
उनके बड़े भाई गणेश का उनके व्यक्तित्व और विचारों पर गहरा असर पड़ा। बचपन की ये सीखें आगे चलकर उनके जीवन की नींव बनीं।
शिक्षा और युवा संगठन
सावरकर ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में दाखिला लिया। वहाँ उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की और ‘मित्र मेला’ नामक युवा संगठन की स्थापना की।
इस संगठन के माध्यम से वे क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़े। वे लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल जैसे महान राष्ट्रवादी नेताओं से प्रेरित थे।
इंग्लैंड में अध्ययन और स्वतंत्रता संग्राम
सावरकर को इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिली। वहाँ उन्होंने ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था – ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम को बढ़ावा देना।
सावरकर ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति विकसित की और ‘The History of the War of Indian Independence’ नामक पुस्तक लिखी। यह पुस्तक भारतियों के लिए प्रेरणा बन गई, हालांकि ब्रिटिश सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया।
साथ ही उन्होंने बम और गुरिल्ला युद्ध सामग्री बनाकर साथी क्रांतिकारियों में वितरित की। उनका मित्र मदनलाल ढींगरा भी ब्रिटिश अधिकारी सर विलियम हट कर्ज़न वायली की हत्या में सक्रिय था।
गिरफ्तारी और काला पानी की सजा
![]() |
Savarkar meditating and writing in Cellular Jail despite torture |
ब्रिटिश सरकार ने सावरकर को पेरिस में गिरफ्तार किया। 13 मार्च 1910 को वे गिरफ्त में आए।
1911 में उन्हें 50 वर्षों के कारावास की सजा मिली और अंडमान के सेल्यूलर जेल (काला पानी) भेजा गया। जेल की कठोर परिस्थितियों और यातनाओं के बावजूद, सावरकर ने अपने देशभक्ति और स्वतंत्रता के संकल्प को कभी नहीं छोड़ा।
जेल में उन्होंने अन्य कैदियों को पढ़ना-लिखना सिखाया और सरकार से अनुमति लेकर एक छोटी पुस्तकालय भी बनाई।
सामाजिक और राजनीतिक योगदान
![]() |
Savarkar speaking to inspire Hindus and fighting against social evils |
जेल से रिहा होने के बाद 6 जनवरी 1924 को उन्होंने रत्नागिरी हिन्दू सभा की स्थापना की। इसका उद्देश्य था – हिंदुओं की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर की रक्षा करना।
1937 में वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने। विश्व युद्ध II के दौरान उन्होंने हिंदुओं को ब्रिटिश शासन का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि भारत स्वतंत्रता की ओर बढ़ सके।
सावरकर कांग्रेस और महात्मा गांधी के कट्टर आलोचक थे। उन्होंने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का विरोध किया और विभाजन के समय दो राष्ट्र सिद्धांत पर आधारित सह-अस्तित्व का प्रस्ताव रखा।
वीर सावरकर की राजनीतिक और सामाजिक सोच
सावरकर की सोच में मानवता, तर्कशीलता और यथार्थवाद का मिश्रण था।
वे जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी खड़े रहे।
उनकी पुस्तकें और विचार आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
उनके साहसिक कार्य और दृष्टिकोण ने उन्हें वीर सावरकर के रूप में अमर बना दिया।
निष्कर्ष
वीर सावरकर का जीवन हमें यह सिखाता है कि साहस, देशभक्ति और दृढ़ संकल्प किसी भी चुनौती को मात दे सकते हैं।
उनके लेख और कार्य आज भी हमें देशभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाते हैं।
जय वीर सावरकर! जय भारत! 🇮🇳
0 टिप्पणियाँ