महाभारत में भीम और हनुमानजी की मुलाकात – साहस और भक्ति का अद्भुत प्रसंग
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भीम और हनुमानजी की अद्भुत मुलाकात – शक्ति और भक्ति का संगम |
महाभारत सिर्फ़ एक युद्ध कथा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन जीने की गहरी शिक्षाएँ छिपी हुई हैं। इस महाकाव्य का एक बेहद रोचक प्रसंग है जब पांडवों में सबसे शक्तिशाली भीम की मुलाकात वानरराज हनुमानजी से होती है। सोचिए, जब बलशाली भीम और अजर-अमर हनुमान आमने-सामने आए होंगे तो दृश्य कितना अद्भुत रहा होगा!
सहस्त्रदल कमल और भीम की यात्रा
वनवास के दौरान पांडव बदरिकाश्रम में रह रहे थे। एक दिन वहाँ एक दिव्य सहस्त्रदल कमल आकर गिरा। उसकी सुगंध और सुंदरता देख द्रौपदी ने भीम से कहा –
“यदि आप ऐसा ही कमल ढूँढकर लाएँ और धर्मराज युधिष्ठिर को भेंट करें, तो कितना अच्छा होगा।”
द्रौपदी की बात सुनकर भीम तुरंत यात्रा पर निकल पड़े। वे गंधमादन पर्वत की ओर बढ़े। रास्ता कठिन था, लेकिन भीम के कदम इतने भारी थे कि चलते ही धरती गूँज उठती और पशु-पक्षी भयभीत होकर भाग जाते।
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गंधमादन पर्वत पर सहस्त्रदल कमल की खोज में निकले भीम |
हनुमानजी से पहला सामना
यात्रा के दौरान भीम एक केले के बगीचे में पहुँचे। वहीं पर हनुमानजी तपस्या कर रहे थे। उन्होंने देखा कि एक तेज़ कदमों से आता हुआ योद्धा इस मार्ग पर बढ़ रहा है। हनुमानजी ने सोचा – “यह रास्ता भीम जैसे अहंकारी को आगे नहीं जाने देना चाहिए।”
उन्होंने अपना रूप छोटा करके रास्ते में लेट गए। भीम ने देखा कि एक वानर सकड़े मार्ग पर लेटा है। उन्होंने गर्जना करते हुए कहा –
“उठो और रास्ता दो!”
लेकिन हनुमानजी ने शांति से जवाब दिया –
“मैं रोगी हूँ। उठ नहीं सकता। यदि जाना है तो मेरे ऊपर से निकल जाओ।”
भीम की विनम्रता और हनुमानजी का आशीर्वाद
भीम ने गर्व से कहा कि वे पांडु के पुत्र और वायुपुत्र हैं। यह सुनकर हनुमानजी मुस्कुराए और बोले –
“तो तुम मेरे भाई हो! लेकिन क्या तुम जानते हो, शक्ति का सही अर्थ विनम्रता और संयम है?”
भीम ने विनम्रता से अनुरोध किया कि वे हनुमानजी का विराट रूप देखना चाहते हैं। पहले तो हनुमानजी ने मना किया, लेकिन जब उन्होंने भीम की सच्ची भक्ति देखी, तो अपना दिव्य रूप प्रकट कर दिया।
पूरा बगीचा उनके स्वरूप से भर गया। यह दृश्य देखकर भीम नतमस्तक हो गए। हनुमानजी ने उन्हें गले लगाकर आशीर्वाद दिया और उनकी थकान मिटा दी।
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भीम के सामने हनुमानजी का विराट रूप प्रकट होना |
अर्जुन के रथ पर हनुमानजी
हनुमानजी ने भीम से वचन दिया –
“महाभारत के युद्ध में मैं अर्जुन के रथ के ध्वज पर रहूँगा। मेरी गर्जना पांडवों का उत्साह बढ़ाएगी और उनके शत्रुओं का मनोबल तोड़ देगी।”
यही कारण था कि कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन का रथ दिव्य शक्ति से चमकता रहा।
इस प्रसंग से मिलने वाली शिक्षा
भीम और हनुमानजी की यह मुलाकात हमें कई गहरे संदेश देती है:
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शक्ति और विनम्रता साथ-साथ चल सकते हैं।
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भक्ति और श्रद्धा से असंभव भी संभव हो जाता है।
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केवल बल ही पर्याप्त नहीं, बल्कि सही मार्गदर्शन और आशीर्वाद भी ज़रूरी है।
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एक सच्चा योद्धा वही है जो बल के साथ भक्ति और ज्ञान को भी अपनाए।
निष्कर्ष
महाभारत का यह प्रसंग हमें याद दिलाता है कि शक्ति तभी सार्थक है जब उसमें भक्ति और विनम्रता का संगम हो। भीम और हनुमानजी की मुलाकात सिर्फ़ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन की सीख है।
कभी-कभी हमें भी यह सोचना चाहिए – क्या हम सिर्फ़ बल पर भरोसा करते हैं या फिर अपने जीवन में भक्ति, संयम और मार्गदर्शन को भी जगह देते हैं?
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