महारानी नायकी देवी अन्हिलवाड़ – वीरांगना और मां
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Thumbnail of Maharani Nayaki Devi Anhilwad – symbol of motherhood and bravery |
महारानी नायकी देवी अन्हिलवाड़ सिर्फ एक रानी नहीं थीं। वह वीरांगना, कुशल योद्धा और मां भी थीं। इतिहास में कहा जाता है कि एक कुमारी जब मां बन जाती है, तो उसकी शक्ति और साहस कई गुणा बढ़ जाते हैं। महारानी नायकी देवी इसका जीवंत उदाहरण थीं।
उनकी मातृत्व, वीरता और नेतृत्व ने उन्हें इतिहास में अमर बना दिया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सन 1175 में, महाराज श्री के देहावसान के बाद राज्य का भार महारानी नायकी देवी पर आया। उस समय वह केवल रानी नहीं थीं, बल्कि एक सक्षम योद्धा और कुशल प्रशासक थीं।
उन्होंने अपने राज्य के लिए:
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सैन्य नीति और रणनीति तैयार की
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राजनीतिक और आर्थिक प्रबंधन संभाला
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अर्थ नीति और प्रशासन में उत्कृष्टता दिखाई
उनके नेतृत्व और रणनीतिक सोच ने अन्हिलवाड़ को सुरक्षित रखा।
मोहम्मद गौरी का आक्रमण
इसी समय मोहम्मद गौरी ने अन्हिलवाड़ और सोमनाथ तीर्थ पर हमला करने की योजना बनाई।
सोचिए, पहले मुगलों के आक्रमण कितने क्रूर और विनाशकारी थे!
गौरी ने मुल्तान जीतकर दक्षिणी पञ्चनद क्षेत्र की ओर कदम बढ़ाया। थार मरुस्थल पार कर अर्बुद पर्वत के पास डेरा डाला।
महारानी नायकी देवी ने गुप्तचरों से सूचना पाई और तुरंत कार्रवाई की। उन्होंने पड़ोसी राजाओं से सहायता मांगी:
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राव किर्तीपाल (जालोर)
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राव धरवर्ष (आबू)
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राव कल्हणदेव (नाड्डूला)
सभी राजाओं ने महारानी को समर्थन दिया।
गौरी ने संदेश भेजा कि अगर महारानी अपने पुत्र, राज्य और स्वर्ण मुद्राएँ सौंप दें, तो वह हमला नहीं करेगा।
लेकिन महारानी नायकी देवी ने सिंहासन और मातृत्व की शक्ति से इसे ठुकरा दिया। वह रणभूमि में खड़ी हो गईं।
वीरांगना का अद्भुत साहस
एक दिन महारानी ने अपने पुत्र मुळराजा द्वितीय को पीठ पर बांधकर घोड़े पर सवार होकर गौरी के डेरे के सामने प्रकट हुईं।
उनके पीछे खड़ी थी कालजयी राजपूती सेना। यह दृश्य देखकर गौरी की सेना स्तब्ध रह गई।
महारानी के हाथ में दुधारी तलवार थी और उन्होंने एक-एक करके गौरी के सैनिकों का संहार किया।
उनकी वीरता ने सैनिकों में दुगुनी ताकत और साहस भर दिया।
रणभूमि में अद्भुत संघर्ष
महारानी नायकी देवी ने रणभूमि में दिखाया कि:
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हर राजपूत योद्धा उनके शौर्य से प्रेरित हुआ
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मातृत्व उन्हें असाधारण शक्ति और साहस देता था
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दुश्मनों को फौरन पराजित करना उनकी प्राथमिकता थी
उनके रणनीति और युद्धकला का संगम उन्हें इतिहास में अमर बना देता है।
युद्ध का परिणाम और ऐतिहासिक महत्व
महारानी नायकी देवी की वीरता के कारण गौरी की सेना हार गई और भाग खड़ी हुई।
इतिहास में इसे कई बार दर्ज किया गया:
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13वीं सदी के इतिहासकार मिन्हाज-ए-सिराज ने लिखा
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16वीं सदी में फरिश्ता ने भी वर्णन किया
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अकबर के समय बदौनी ने उनकी वीरता का उल्लेख किया
इस विजय ने महारानी नायकी देवी को महायोद्धाओं के समकक्ष स्थापित कर दिया।
मातृत्व और वीरता का संगम
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Nayaki Devi as mother and warrior carrying her son while fighting bravely |
महारानी नायकी देवी सिर्फ रणभूमि की वीरांगना नहीं थीं, बल्कि एक मां और कुशल राज्यपाल भी थीं।
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मातृत्व उन्हें 100 गुणा अधिक शक्ति देता था
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उनके साहस और नेतृत्व ने साबित किया कि महिला योद्धा और मां का संयोजन असंभव को संभव बना सकता है
इतिहास में योगदान और प्रेरणा
महारानी नायकी देवी ने सिर्फ युद्ध नहीं लड़ा:
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उन्होंने अपने राज्य को सुरक्षित और सुव्यवस्थित रखा
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उनका साहस और मातृत्व पूरे भारत में प्रेरणा स्रोत बने
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उनकी कहानी आज भी साहस, मातृत्व और शौर्य का पाठ पढ़ाती है
निष्कर्ष
महारानी नायकी देवी अन्हिलवाड़ की कहानी हमें यह सिखाती है कि:
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साहस, मातृत्व और वीरता का संयोजन अद्भुत होता है
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एक मां और योद्धा की शक्ति इतिहास में अमर हो जाती है
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नायकी देवी ने गौरी की आक्रामक सेना को पराजित कर इतिहास लिखा
जय महारानी नायकी देवी अन्हिलवाड़!
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