महाभारत के अर्जुन: नंदी घोष रथ, दिव्य अस्त्र और अनोखी गाथा
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अर्जुन और श्री कृष्ण का नंदी घोष रथ, श्रीकृष्ण सारथी और हनुमान ध्वज |
महाभारत की बात आते ही सबसे पहले जिन नामों की गूंज सुनाई देती है, उनमें से एक है अर्जुन और श्री कृष्ण।
वे केवल एक महान धनुर्धर ही नहीं थे, बल्कि भगवान अर्जुन और श्री कृष्ण के परम सखा, भक्त और धर्म के मार्ग पर चलने वाले आदर्श नायक भी थे।
कई लोग कहते हैं – अगर अर्जुन और श्री कृष्ण मार्गदर्शक थे तो अर्जुन वह हाथ थे जिनसे धर्म की विजय लिखी गई।
आइए, जानते हैं अर्जुन के दिव्य रथ नंदी घोष, उनके शस्त्रों, शिक्षा और उन प्रसंगों के बारे में जो उन्हें महाभारत का सबसे महान योद्धा बनाते हैं।
अर्जुन का दिव्य रथ – नंदी घोष
क्या आप जानते हैं कि अर्जुन का रथ साधारण नहीं था?
इसे वरुण देव ने अर्जुन को प्रदान किया था। रथ श्वेत (सफेद) रंग का था और इसमें चार सफेद घोड़े जोते जाते थे।
उस रथ की सबसे खास बात थी कपिध्वज, यानी हनुमान जी का ध्वज।
लोग कहते हैं कि जब भी हनुमान ध्वज लहराता, दुश्मनों का मनोबल टूट जाता।
और इस रथ को कौन चलाता था? कोई सामान्य सारथी नहीं – स्वयं भगवान अर्जुन और श्री कृष्ण।
सोचिए, जब भगवान ही सारथी हों तो विजय को कौन रोक सकता है!
युद्ध के अंत में जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को रथ से उतरने के लिए कहा और फिर स्वयं उतरे, उसी क्षण रथ भस्म हो गया।
यह मान्यता है कि रथ की रक्षा केवल अर्जुन और श्री कृष्ण की उपस्थिति से ही संभव थी।
गाण्डीव धनुष और अक्षय तूणीर
अर्जुन का सबसे प्रसिद्ध शस्त्र था – गाण्डीव धनुष।
कहते हैं, इसे कोई साधारण मानव छू भी नहीं सकता था।
खांडववन दहन के समय अर्जुन ने अग्निदेव की सहायता की।
प्रसन्न होकर अग्निदेव ने उन्हें तीन अमूल्य उपहार दिए –
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कर्ण, अर्जुन और श्री कृष्ण – गाण्डीव धनुष
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अक्षय तूणीर (जिसके बाण कभी खत्म नहीं होते)
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अग्नेयास्त्र
इसी कारण अर्जुन को "गाण्डीवी" भी कहा जाता है।
इतना ही नहीं, अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली थी कि कर्ण, अर्जुन और श्री कृष्ण का अपमान करने वाले को वह कभी क्षमा नहीं करेंगे।
भगवान शिव और पाशुपतास्त्र
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| पाशुपतास्त्र दिया |
अर्जुन का जीवन केवल युद्धों से नहीं, बल्कि तपस्या और भक्ति से भी भरा हुआ था।
वनवास के दौरान उन्होंने कठोर तपस्या की।
कहा जाता है कि भगवान शिव खुद शिकारी (किरात) के वेश में आए और अर्जुन से युद्ध किया।
अर्जुन की वीरता और भक्ति देखकर शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें अपना अद्वितीय अस्त्र – पाशुपतास्त्र दिया।
यह अस्त्र इतना प्रचंड था कि इसका प्रयोग केवल आपात स्थिति में ही किया जा सकता था।
वरना इसका परिणाम विनाशकारी होता।
गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा
अर्जुन अपने गुरु द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य थे।
कहते हैं, द्रोणाचार्य ने उन्हें अश्वत्थामा से भी अधिक प्यार दिया।
गुरु ने अर्जुन को अनेक विद्या दी –
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चक्रव्यूह भेदन की कला
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ब्रह्मशिरा अस्त्र का ज्ञान (श्री कृष्ण का कुरुक्षेत्र योगदान)
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और वह प्रसिद्ध शिक्षा जब उन्होंने चिड़िया की आँख पर ध्यान केंद्रित किया।
अर्जुन की लगन और गुरु भक्ति ही उन्हें बाकी सभी से अलग बनाती थी।
एकलव्य भी इसी तरह तपस्या और गुरु भक्ति के उदाहरण हैं।
देवताओं से अर्जुन को प्राप्त वरदान
अर्जुन को कई देवताओं का आशीर्वाद मिला।
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इन्द्र से – वज्र अस्त्र और दिव्यास्त्र विद्या
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वरुण देव से – नंदी घोष रथ और वरुण पाश
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अग्निदेव से – गाण्डीव और अक्षय तूणीर
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वायुदेव से – वायव्य अस्त्र
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कुबेर से – अन्तर्धान अस्त्र
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द्रोणाचार्य से – ब्रह्मशिरा अस्त्र
इन दिव्य अस्त्रों ने उन्हें युद्धभूमि में अजेय बना दिया।
उर्वशी का श्राप और बृहन्नला की कथा
अर्जुन जब इन्द्रलोक गए, तो वहाँ उन्होंने दिव्यास्त्रों की विद्या सीखी और चित्रसेन गंधर्व से नृत्य-संगीत भी सीखा।
लेकिन एक रोचक प्रसंग हुआ – अप्सरा उर्वशी ने अर्जुन को मोहित करना चाहा।
अर्जुन ने उन्हें माता समान मानकर प्रणय निवेदन अस्वीकार कर दिया।
क्रोधित होकर उर्वशी ने उन्हें एक वर्ष तक नपुंसक होने का श्राप दे दिया।
इसी श्राप के कारण अर्जुन ने मत्स्य देश में "बृहन्नला" बनकर राजकुमारी उत्तरा को नृत्य और संगीत सिखाया।
अर्जुन और श्रीकृष्ण का बंधन
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| भगवद्गीता का उपदेश दिया |
महाभारत युद्धभूमि में पांडव और श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया गया।
गीता केवल अर्जुन के लिए नहीं थी, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए मार्गदर्शन बनी।
यही उपदेश आज भी जीवन के हर संघर्ष में हमें दिशा देता है।
अर्जुन के नाम और उपाधियाँ
अर्जुन को कई नामों से जाना जाता था –
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पार्थ (पृथापुत्र)
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सव्यसाची (दोनों हाथों से बाण चलाने वाला)
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धनंजय (धन अर्जित करने वाला)
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गाण्डीवी (गाण्डीव धनुष धारक)
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गुडाकेश (निद्रा पर विजय पाने वाला)
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विजय (हमेशा विजयी रहने वाला)
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किरीटी (इन्द्र द्वारा दिया गया मुकुट पहनने वाला)
हर नाम उनके जीवन और विशेषता की अलग झलक दिखाता है।
अर्जुन का संदेश
अर्जुन केवल एक योद्धा नहीं थे।
वे धर्म, भक्ति, साहस और ज्ञान के अद्भुत संगम थे।
उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि चाहे समय कितना भी कठिन क्यों न हो,
अगर हम धर्म पर डटे रहें, अपनी निष्ठा न छोड़ें और सही मार्गदर्शन को अपनाएँ,
तो विजय निश्चित है।
FAQ – अर्जुन से जुड़े सामान्य प्रश्न
Q1. अर्जुन के रथ का नाम क्या था?
अर्जुन का रथ नंदी घोष – अर्जुन और श्री कृष्ण
Q2. अर्जुन के प्रमुख अस्त्र कौन से थे?
गाण्डीव धनुष, अक्षय तूणीर, पाशुपतास्त्र, वज्र अस्त्र, अग्नेयास्त्र, वरुण पाश, वायव्य अस्त्र, ब्रह्मशिरा अस्त्र (कर्ण, अर्जुन और श्री कृष्ण)
Q3. पाशुपतास्त्र अर्जुन को किससे मिला?
भगवान शिव ने कठोर तपस्या के बाद अर्जुन को यह अस्त्र दिया।
Q4. अर्जुन को बृहन्नला क्यों बनना पड़ा?
उर्वशी के श्राप के कारण उन्हें एक वर्ष नपुंसक बनकर मत्स्य देश में रहना पड़ा।
Q5. अर्जुन का सबसे प्रसिद्ध धनुष कौन सा था?
गाण्डीव धनुष (कर्ण, अर्जुन और श्री कृष्ण)
✨ निष्कर्ष:
अर्जुन केवल युद्ध का ही नायक नहीं थे।
वे धर्म, भक्ति, साहस और ज्ञान के अद्भुत संगम थे।
अर्जुन और श्री कृष्ण की कहानी हमें सिखाती है कि सही मार्गदर्शन और निष्ठा से विजय निश्चित है।



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